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10:42, 2 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

वह बच्चा अंकुर है
मेरे और तुम्हारे बीजे हुए धान का
तलाशता रहता है वह
माँ का आँचल हर आकाश तले
सलाखें रोशनाई के धब्बे
उसके बदन से गुजरे
वह चुप हो गया सलीब जैसा
कुछ स्पर्श, धूप के टुकड़े
उसकी आँखों की उजास बने
उसने दीवारें ढहा दीं
मुक्त गगन के नीचे
वह बढ़ता ही जा रहा है
आगे-आगे और भी आगे।