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"तुम्हारी आवाज़ / शैलजा सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

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कमरे में
गूँजती है सिर्फ तुम्हारी आवाज़,
तुम्हारे निर्णय,
तुम्हारी सोच,
तुम्हारी इच्छायें...
अँधेरे कोनों में
सहमते हैं,
मेरे सपने,
मेरे विचार,
मेरे भाव…
डर के मारे पीला पड़ जाता है मेरा वर्तमान,
सिर चकराता है मेरे भविष्य का,
क्या प्रेम, एकतरफा समझौतों का नाम है?