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कैसन अप्पन बात?
खिले के पहिले छछनल सूखल
विन पानी जलजात।
सूर्याेदय भी देख न पइलूँ
ससि के डूबल राग,
खोते में रह गेल चिरैयाँ
सुखगेल मन अनुराग।
सांत न कहिओ छोड़लक हमरा
मन के झंझावत।
चांद तो हमरो चमकल ऐसन
लेकिन दिन दू-चार,
कुमुद-कुमुदिनी विहँसल मन में
भरलक खुसी अपार।
दगध चकोरी इतरायल तब
हो गेल जब वरसात।