भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मेरी ये आँखें / रामेश्वरलाल खंडेलवाल 'तरुण'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वरलाल खंडेलवाल 'तरुण' |अनुव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

15:45, 12 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

मेरी ये आँखें किसने गढ़ींे?
शिल्पी-कितना अविवेकी वह!
पुतलियों में अनबिंध मोतियों के पानी वाला
जिसने जड़ दिया नौलख हीरा!
और फिर उस पर कर दी गोमेद की पच्चीकारी,
किरणों की तरल चित्रकारी!
और उसमें भर दीं वसन्ती चाँदनियाँ,
पहाड़ी रागिनियाँ,
सपनों के मेले,
सावनी घटाएँ,
और भिनसारी चहचहाहटें!

पर जन्म से आज तक
नाश, मरण व ध्वंस ही तो
इन आँखों से दिखाने थे!
तो फिर ज़रा कुछ सोचता तो सही वह भला आदमी-
काली पुतलियों और नयन-तारों की जगह
डेले में
रख दी होती-
बन्दूक की या सोडावाटर की बॉटल की
कोई रक्ततरंजित गोली ही!