भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रसोई / रामदरश मिश्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामदरश मिश्र |अनुवादक= |संग्रह=मै...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:00, 12 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

कोठी हो या सामान्य घर
या फुटपाथ पर का छोटा सा तंबू
उसमें रसोई कक्ष या उसकी जगह की
विशेष महत्ता होती है
सुबह को
सारा घर सिमट आता है उसके आसपास
और चूल्हे की ऊर्जा
उसकी खुशबू
उसकी कल ध्वनि
जीवन बनकर व्याप जाती है पूरे घर में
घर की हर सुबह हँसती हुई
निकल पड़ती है दिन की यात्रा के लिए
घर फिर शाम को हो जाता है रसोईमय
उसकी उष्मा लेकर
वह रात में समा जाता है
और अच्छी नींद में अच्छे सपने देखता है

हाँ रसोई एक सी नहीं होती
किसी में विविध व्यंजन बनते हैं
किसी में सादा खाना
किसी में अंगीठी पर मोटी रोटियाँ सिंकती रहती हैं
यानी कि अलग अलग तरह के चूल्हों की
अलग अलग लय होती है
जो फैलती रहती है घरों की गति बन कर
लेकिन जिस घर में चूल्हा नहीं होता
या होकर भी उदास सोया रहता है
वह घर होकर भी
घर कहाँ होता है
उसमें तो एक उजाड़ सूनापन काँपता रहता है
-23.1.2015