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"घर-बाहर / रामदरश मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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16:06, 12 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

घर कितनी प्यारी जगह है
लेकिन उसमें बंद-बंद औरतों को
ऊब महसूस होने लगती है
बाहर की दुनिया रह-रहकर उन्हें पुकारती सी लगती है
जहाँ कई घरों से निकल कर
औरतें एक समूह में मुक्ति की साँस ले सकें
आज वसंत में एक प्रसंग में
उन्हें बाहर आपस में लिने का अवसर मिल गया
वे देर तक बतियाती रहीं
एक दूसरे में आती जाती रहीं
पेड़ों पर चहचहाती चिड़ियों के स्वर में
स्वर मिलाती रहीं
हवाओं के साथ उड़ती रहीं
चारों ओर उमड़ी फसलों के रंगों में तिरती रहीं
एकाएक उन्हें लगा कि घर पुकार रहा है
वे जल्दी-जल्दी घर लौटने लगीं
और उन्हें प्रतीत हुआ कि
घर पहले से ज़्यादा प्यारा लगने लगा है।
-17.3.2015