भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बसंत तान तान के कमान / दीनबन्धु" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीनबन्धु |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatMagahiR...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

17:56, 12 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

बसंत तान तान के कमान, सगरो मारे।
विदेसिया आवऽ हो आवऽ हो, बलमा आ रे॥
कोइलिया टुभके कुहुके, रतिया सगरी सगरी,
देउरा मुसके ठुसके बतिया, नगरी नगरी,
हमर हे आफत में जान, देह चन्दा जारे॥
बहे अँखिया कजरा गजरा, हिरिदा सूखे,
धड़के छतिया अँचरा भींजे, तोहरे दूखे,
गरज ने ठान मान के नेह, गीतिया गारे॥
ननदिया ठोली बोली गोली, मारे हरदम,
दुअरिया झूमे होलइया तो, जागे सरम
लाल डोलिया दुअरिया अब, सजना लारे॥