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"चेहरा / योगेन्द्र दत्त शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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हसीन चेहरा
नफीस चेहरा
वो मेरा ताजातरीन चेहरा
कहां गया
कुछ पता नहीं है
उदास चेहरा
पिटा-पिटा-सा जलील चेहरा
नहीं
ये चेहरा मेरा नहीं है!

मैं बन-संवरकर
जब आइने में
हसीन चेहरे को देखता हूं
तो भोलेपन की जगह
हमेशा
अजीब, विकृत-सा एक चेहरा
इस आइने में से झांकता है
मुझे चिढ़ाता है भूत बनकर!

ये आइने को
क्या हो गया है
या मेरा चेहरा बिगड़ गया है
मुझे ये बिल्कुल पता नहीं है!

वो मेरा चेहरा
हसीन, ताजातरीन चेहरा
जिसे मैं सिरहाने रखके सोता
संवारता हूं सुबह-सवेरे
तमाम दिन भी
वही दमकता, चमकता
मेरा नफीस, दिलकश, हसीन चेहरा
वही अचानक
कहीं हुआ गुम!

ये बदनुमा दाग जैसा चेहरा
मेरा नहीं है
ये आइने को क्या हो गया है!

अगरन इसने रवैया बदला
तो मैं किसी दिन
इसे उठाकर
हजार टुकड़ों में तोड़ दूंगा!

पर अपना चेहरा
कहां से बदलूं
यही है बेचैनी मेरी सारी
जो मेरे चेहरे को
और वहशी बना रही है!
-9 मार्च, 1991