भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"एक घूँट / रामावतार यादव 'शक्र'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामावतार यादव 'शक्र' |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
10:47, 14 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
कहा किसी ने नहीं आज तक,
क्यों इतना निष्ठुर संसार।
बढ़ता हूँ ज्यों-ज्यों आगे,
पथ में मिलते हैं बटमार।
वर्तमान को छोड़ विकल मैं
जाता हूँ विस्मृति-जग में।
आह! विन्दु के ही वियोग में
सूख रहा सागर लाचार।
जीवन में अतृप्त तृष्णा ले
बना हुआ मैं दीवाना।
पढ़ पाया मैं नहीं आज तक
अपना अनमिल अफसाना।
एक घूँट के लिए तरसता,
शान्ति-सलिल का पता नहीं।
भटकेगा जग मुझे खोजने,
जब होगा मेरा जाना।
-1933 ई.