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"जीवन / रामावतार यादव 'शक्र'" के अवतरणों में अंतर
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निर्झरिणी ने कहा अचल से
आँखों में आँसू भरकर-
”आई तेरे मधुर अंक में
जलन बुझाने को पल भर।
पर, तुम निष्ठुर बन ठुकराते,
मैं बहती जाती अनजान।
अंतस में आकुलता भरकर,
जीवन में अशान्ति लेकर।“
अचल ने कहा-”स्थिर होकर मैं
देख रहा जगती चंचल।
व्यर्थ विघ्न तू डाल रही है,
रहने दे मुझको अविचल।
जाल बिछा माया-ममता का
मेरी भंग समाधि न कर।
जीवन अग्नि परीक्षा है यह,
यही सोचता मैं प्रतिपल।“
-1934 ई.