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"जीवन / रोहित ठाकुर" के अवतरणों में अंतर

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11:10, 14 अप्रैल 2018 का अवतरण

एक साईकिल पर सवार आदमी का सिर
आकाश से टकराता है
और बारिश होती है
उसकी बेटी ऐसा ही सोचती है

वह आदमी सोचता है की उसकी बेटी के
नीले रंग की स्कूल-ड्रेस की
 परछाई से
आकाश नीला दिखता है

बरतन मांजती औरत सोचती है
मजे हुए बरतन की तरह
साफ हो हर
 मनुष्य का हृदय

एक चिड़िया पेड़ को अपना मानकर
सुनाती है दुख
एक सूखा पत्ता हवा में चक्कर लगाता है
इसी तरह चलता है जीवन का व्यापार।


गोली चलाने से पलाश के फूल नहीं खिलते
बस सन्नाटा टूटता है
या कोई मरता है

तुम पतंग क्यों नहीं उड़ाते
आकाश का मन कब से उचटा हुआ-सा है
तुम मेरे लिए ऐसा घर क्यों नहीं ढूंढ़ देते
जिसके आंगन में सांझ घिरती हो
बरामदे पर मार्च में पेड़ का पीला पत्ता गिरता हो

तुम नदियों के नाम याद करो
फिर हम अपनी बेटियों के नाम किसी अनजान नदी के नाम पर रखेंगे
तुम कभी धोती-कुर्ता पहनकर तेज कदमों से चलो
अनायास ही भ्रम होगा दादाजी के लौटने का

तुम बाजार से चने लाना और
 ठोंगे पर लिखी कोई कविता सुनाना।