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विश्व-सिरमौर यह, भारतवर्ष हमारा है
भवभूतियों से उज्ज्वल, जगत का सहारा है।
प्रसिद्ध इस पुण्यभूमि के हम आर्य हैं कहलाते
दक्ष हम हर कला में, आचार्य हम ही कहलाते।
पावन ऋषि भूमि है ये, पावन-सी सुर गंगा है
नित शीश नवाते हम, विजयी हमारा तिरंगा है।
बसंत, पतझर, ग्रीष्म, शीत ऋतुएँ आती जातीं
ज्योति-कलश रश्मियाँ, मधुर यहाँ लुढ़काती।
साहस अभिमन्यु का, परिचायक मेरे देश का
करते सदा पालन हम संस्कारों के आदेश का।
चल कर कंटीले-पथ पर, विजय-मार्ग हम चुनते हैं
हम भारतवासी सर्वदा, मन की अपने सुनते हैं।
गौरवमयी मेरी धरती माता सदियों यूँ ही फले फूले
हे माँ! तेरे अँगना में, सुख-समृद्धि सदा झूला झूले।