भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ऋण फूलों-सा / सुनीता जैन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुनीता जैन |अनुवादक= |संग्रह=यह कव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

17:53, 16 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

इस काया को
जिस माया ने
जन्म दिया,
वह माँग रही-कि

जैसे उत्सव के बाद
दीवारों पर
हाथों के थापे रह जाते

जैसे पूजा के बाद
चौरे के आसपास
पैरों के छापे रह जाते

जैसे वृक्षों पर
प्रेम संदेशों के बँधे,
बँधे धागे रह जाते,
वैसा ही कुछ
कर जाऊँ

सोच रही,
माया के धीरज का
काया की कथरी का

यह ऋण
फूलों-सा हल्का-
किन शब्दों में
तोल,
चुकाऊँ