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"तुला / सुनीता जैन" के अवतरणों में अंतर
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संयत होने को तुला
इधर उठी, कभी उधर
झुकी,
बाटों पर बाट दिए
आधे, पौने,
सेर, पचसेरी
डंडी लेकिन नहीं सधी
क्लांत हाथ, तकते-तकते
आँख थकी
एक ठौर का भाग्य नहीं था-
नहीं टिकी।