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"वह और बात है / सुनीता जैन" के अवतरणों में अंतर

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18:28, 16 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

तुम्हारे इतने बड़े
मरुस्थल में
क्या एक ओक
पानी नहीं?

सिर्फ रेत है
बावली
इधर-से-उधर
दौड़ती?

अवश्य यहीं कहीं
सुरक्षित होगी
वनस्पति,
होगा जल,
जलचर भी-

वह और बात है कि
तुम
वहाँ से भी
लौट आओ
खाली-के-खाली