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"जड़ / सुनीता जैन" के अवतरणों में अंतर
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काट दिया तरु
क्योंकि
हानि की आशंका थी
घर को,
छत को, उस से
खेला गया
खूब बढ़ा घर
किन्तु जीर्ण हुई छत
बरखा, सहते-सहते
पूछ रही,
तरुवर क्या तुम,
मुझे
क्षमा कर दोगे?
मौन रही वह धरती
जिसमें,
कटे तरु की
दुखती जड़ थी
जाने कितने युग से