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"मूक करोति वाचालं / सुनीता जैन" के अवतरणों में अंतर
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जितनी जिसकी कल्याणी वाणी
उतनी उतनी पाता वह भाषा
किन्तु पा लेने भर से
कभी नहीं कुछ होता-
हर पल अखुँआना होता है,
जल दे-दे अक्षर को,
तब कहीं पनपती वह-
सोते-जगते,
किसी पुनीत पल,
टप् से झर
कविता का फल होता है