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"जीवनभर की आग / सुनीता जैन" के अवतरणों में अंतर

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12:28, 17 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

नहीं मन में
मन चपल रहा
अंगों में नहीं
राग-

दो मुट्ठी भी
राख हुई न
जीवन भर की आग