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"पौष / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर" के अवतरणों में अंतर

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कोहरे ने लगाया
आपातकाल जारी है
और अमलतास पर ताले पड़े हैं

सलाख़ों-सी लंबी
अमलतास की चेतना शून्य
फलियों के सामने
काली टोपी पहनीं
ठिठुरती बुलबुलें गाती हैं
जनवरी के क्रांति गीत

वे ग्रीष्म को आज़ाद कराने आई हैं।