भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सुप्त प्रेम बीज / राजेश शर्मा 'बेक़दरा'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेश शर्मा 'बेक़दरा' |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
18:10, 21 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
हर सपना
आंखों में आखिर
कब तक ठहरे
सपने भी आखिर
थक कर चूर हो जाते हैं
वो सपने फिर अन्तस् में
थक कर सो जाते हैं
एक गहरी नींद के साथ
हमबिस्तर होकर
मिट्टी व अंधेरे में छुपे
सुप्त बीजपत्रो की भांति
जो प्रतीक्षारत रहते हैं
कुछ उम्मीदों की एक अनवरत
श्रंखला के साथ
कुछ उम्मीदों नम मिट्टी की
कुछ उम्मीदे बागबान की
कुछ उम्मीदे प्रेम वर्षा की
कुछ उम्मीदे उपयुक्त भाग्य की
कुछ उम्मीदे उचित समय की
तुम भी जीवित हो मुझमे
सुप्त प्रेम बीज की भांति
ओर मैं प्रतीक्षारत
कुछ उम्मीदों की
अनवरत श्रंखला के साथ