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"मौन की प्रतीक्षा / राजेश शर्मा 'बेक़दरा'" के अवतरणों में अंतर
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उसके चहकने से पहले
सब हो जाता हैं,
थिर ओर शांत
उसके चहकने के ठीक बाद
हृदय होने लगता हैं,कम्पित
तैरने लगते है कुछ विचार
ओर ढूँढने लग जाते हैं
चहकने के अर्थ
और उसकी दैहिक भाषा के अर्थ
जो नही मिलते किसी शब्दकोश में
ऐसी ही हैं, वो
एक अबूझ पहेली
नितांत मौन,
हृदय में अँजुरी भर सागर लिए
वह सदैव मेघ गर्जना की भांति आती हैं
धीमे से छोड़ जाती है
आंखों में विरह की कुछ बूँदे
जो बिखर जाती हैं
सर्जन के पन्नो पर
उधड़ी-उधड़ी कविताओं के साथ