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"जात के पानी / मथुरा प्रसाद 'नवीन'" के अवतरणों में अंतर
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एक बात कहियो?
सागर में
डुबकी लगाबै ले पड़तो
अउ
अपन अंतरात्मा के
जगाबै ले पड़तो
देखऽ हा नै
बाबू साहेब के
फुलवारी में कुइयाँ
जहाँ
नै घैला चढ़ऽ हो
न टुइयाँ
ओजा भरल जा हो
दरबारी कलसी
जहाँ रगड़ल जा हो
सोना के मलसी
ई जात अर पात
अलग कैने हो
तोहर पानी अ भात