भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बोल के कही / मथुरा प्रसाद 'नवीन'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मथुरा प्रसाद 'नवीन' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:23, 24 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

एक दिन
तोहर बोली के कहर
बदल देतो गाँव अउ सहर
कही नरमी
कही तेजी ने रहतो
दुख जे बरदास्त करो
वैसन कोय अंगेजी नै रहतो
तोहर खून
जब साफ हो जैतो
ऊ दिन
इनकलाब हो जैतो
ई तो कहो की चाहऽ हा
अपन घर के लंका
तो अपनै काहे डाहऽ हा?
बिछल एही घर में
खटिये तो चाहऽ हा
बेटी के बिआह में
लखपतिये तंहू चाहऽ हा
तब ने मरऽ हो
दस बीस के कहो
केतना बेटी रोज जरऽ हो
इहे सब पाप
तोरा कैने कमजोर हो
ओकरे छिपैने हा
मन में चोर हो
जे दिन
गरिबका सब जोर लेवा गांठ
ऊ दिन
निकल जैतो दूध से मांठ