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14:25, 24 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

सीताराम सीताराम!
आपस के फूट,
कुरसी के लूट,
कइसे जीबा?
कहिया तक
अपने में लड़ के
अप्पन खून तों अपने पीबा?
अलख,
खोल दा
अपन-अपन पलक
बदल दा तेवर,
तभिये बदलतो
ई देस के कलेवर
जौर होबो
जइसे चींटी,
कुल मिलके
बना ला एगो कमीटी
जेकरा में
नै रहो धरम
नै रहो जात,
ऊपर से मुस्की
तरे-तरे घात
न केकरे ले काबा
न केकरे ले काशी,
सब कहै
अपना के भारतवासी
न केकरे खुसामद
न केकरे खवासी,
न संत न सन्यासी
जइसे मुफ्त मिलऽ हो
सूरज के गरमी अउ हवा,
वैसें मुफ्त मिलो
कमियाँ के रोटी-कपड़ा
मुफ्त के दवा
नै केकरे
मांगै पड़े भिक्षा,
सबके शिक्षा
आखिर कहिया तक?
जब तक
तों सब
आग नियन
नै सुलग रहला हे
तहिया तक
तोरे मरजी के मोल हो
अभियो तो बोलो,
मजबूरी नै रहतो
तनी
मुँह तो खोलो
तो अपन ताकत
काहे नै तोल रहला हे?
अतलंकी के डर से
भगवा काहो खोल रहला हे?
चाहे तो
फेर उड़े ले पड़तो
ने तो
जुल्मी जीतो,
तोरा मरैले पड़तो
घर से भी जैबा भाग,
दुस्मन
लगा देतो
तोहर घर में आग
ऊ जे
कोठा बाला हो,
बड़ी गरजतो
काहे कि ऊ बड़का ठोंठा बाला हो
ओकर उंगली के
इसारा असर जा हे,
ऊ जब चाहऽ हे।
हमर खून बहऽ हे।
ऐसन सदमा,
तों नै कर सकऽ हा
ओकरा पर मुकदमा
तों की देवा दलील?
ओकर एगो बेटा
हो हाईकोट के वकील
चल जैतो गज,
ओकर एगो बेटा
हो सुप्रिमकोट के जज
सुनके करेजा काहे दलको हो?
आजादी के बाद से
तों नै पढ़ला
उहे पढ़लको हे
इहो मत जैहा भूल,
ओकरे बेटा ले
खुललो हे नवोदय स्कूल
ओकरा में लेबै ले दरजा,
खोजै पड़तो तोरा
बीस हजार करजा
जे हलो राह के राही,
उहो घूसे देके
बनलो हे
दरोगा अउ सिपाही
एकरा नाटक कहो या थेटर,
जनवादी कहो कि डिक्टेटर
ई सव हो निरगुट,
सब कुछ करै के
एकरा हो छूट
न कोय अंकुस
न कोय खट्टहा,
ई सव
उजड़ा सांढ़ हो
वहसल छुट्टा
हम्मर हाथ में कलम हो
सच सच कहऽ हियो
जे गरीब हा
किसान हा
मजदूर हा
कलम तोहर साथ हो
तों भुक्खल रहबा
तोरा साथ हम्हूं रहबो,
केतनै अंधड़ चलो कि तूफान
हावा के साथ नै बहवो
हवा के साथ
 बहै बाला
कवि कलाकार,
ओकरा खरीद रहलो हे
नॉबेल पुरस्कार
ओकर पिन्हावा
गरब के गरमी
पंखा के हाबा।