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सीताराम सीताराम!
बाप रे बाप!
नै रहल जा है चुपचाप
भीख मांगै में भी दरजा,
दू नम्बर के आदमी
ले रहले हे सरकारी करजा
कोय बेच रहले हे खाद
कोय नाशक दबाय
किसान के खेत
खा रहले हे कीड़ा,
और सरकारी राहत
ऊँट के मुँह में जीरा
गरीब के जोड़न,
सब खा जा हे
खाखू आर खखोरन
केकरा है जरूरत,
टुक-टुक देख रहले हे
आदमी के मट्टी के मूरत
फजीहत के
कोठरी में आदमी बंद है
फजीहत करै बाला के
हौसला बुलंद हे
हौसला बुलंद हे उन्मादी के,
खिस्सा याद परऽ हे
ऊ बुढ़िया दादी के,
जे फोटा खिंचलके हल
ई अहिंसावादी के
कहलके हल बुढ़िया दादी
कि हे बबुआ,
ऐतो जब आजादी
अहिंसा के गरदन में
लटक जैतो हिंसाबादी।
अब की चाहऽ हा, बोलो?
तनी तों कइसन हो
अपन दिल तो टटोलो
ई आग
तोरा जीअय नै देतो,
पिन्हने रहो,
फटल गुदरिये, सीअऽ नै देतो
हम कहऽ हियो कि
सब तोरे करनी हो,
कि आँख में
मरौवत नै
नाक पर नहरनी हो
जिंदगी के
घसीट रहला हे,
पेट में भूख लगल हो
तब छाती पीट रहता हे
ई लहर
तोरा छटपटा के रखतो
आठो पहर
के लिखै बाला हे
ई सब कहानी?
सब के कलम में हे
स्याही के बदले पानी
कोय नै हे दिनकर
जे ज्वाला उगल सकऽ हे,
सिर पर कफन बांध के
घर से निकल सकऽ हे,
कैसे चलतै ई राज?
नें तन पर कपड़ा
न पेट भर अनाज!
ऐसन जवानी
जड़ऽ है नै
कि इंसान घुट रहले हे
सैतान मरऽ हे नै
कोय नै जनमले हे
सिंघनाद करै बाला
कहाँ कोय हे
शहीद के याद करै बाला?
बेदी पर तो
फूल चढ़ रहले हे,
मन में पोलाव गढ़ रहले हे
कि देस के दसा
अब आगे बढ़ रहलें हे
हम आगे बढ़ रहलूँ हे
कि घट रहलँ हें?
चित्त हो रहलँू हें
कि उलट रहलूँ हें?
बंद है अभियो
मुदिर के दुआर
कहाँ भेलै तोहीं कहो
हरिजन के उद्वार
हरिजन पर तो
एतना अत्याचार हे
कि केकरे घर नै हे
न रोटी चलऽ हे
न दाल चलऽ हे
जने तने छुट्टा कमाल चलऽ हे।