भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पाकिटमार रहल हे / मथुरा प्रसाद 'नवीन'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मथुरा प्रसाद 'नवीन' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:06, 24 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
अउ देखो भिखारी,
भिखिये मांग के
चला ले हइ
अप्पन परिवार के रेलगाड़ी
एकर तरीका
रोज भोरे होत
बिना नहैने टीका
मोट मोट
कँढ़ैसा नियन काया,
कहने चलऽ हो
भगवान के माया
भोर से दुपहर तक
झोली ओकर भर जा हे,
भोरे-भोरे आदमी के
ठोंठा पर चढ़ जा हे
धरम के नाम पर
लुटेरा के माफ है
जेकरा कुछ ने हे
ऊ तो मरल जीव,
अंधरा अउ कोढ़िया के
रोटी नै नसीब
जेकरा हाथ गोर हे
उहे झार रहल हे
जेकरा जइसे बनऽ हे
पाकिट मार रहल हे।