भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तुम लौट आना / आनंद गुप्ता" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आनंद गुप्ता |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:23, 2 मई 2018 के समय का अवतरण
तुम लौट आना
जैसे किसी स्त्री के गर्भ में
लौटता है नया जीवन
जैसे लौट आती है आवाजें
चट्टानों से टकराकर हर बार
जैसे हर पराजय के बाद
फिर से लौट आती है उम्मीद।
तुम उस तरह मत लौटना
जैसे क्षणिक सुख बिखेर कर
वापस लौट आती है लम्बी उदासी।
तुम लौटना
जैसे गहरे जख्म के बाद
खिलखिलाती हुई
वापस लौट आती है शरीर पर त्वचा
जैसे पतझड़ में टूटी पत्तियाँ
लौट आती है वसंत में
जैसे आंगन में फुदकती शावक चिड़ियाँ
लौट आती है घोंसले में सुरक्षित
तुम लौट आना हर बार
जैसे लम्बी दूरी तय करके
प्रवासी पक्षियाँ
सही रास्ते लौट आती है अपने घर
तुम लौट आना
उन शब्दों की तरह
जिनसे मेरी हर कविता मुक्कमल होती है।