भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"प्रेम में रेत होना / आनंद गुप्ता" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आनंद गुप्ता |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:26, 2 मई 2018 के समय का अवतरण
रेत की देह पर
नदी की असंख्य प्रेम कहानियाँ है
नदी पत्थर को छूती है
पत्थर काँपता है
और बिना कुछ सोचे नदी को चूमता है
नदी उसका आलिंगन करती है
पत्थर उतरता है धीरे-धीरे
नदी के दिल में
गहरे और गहरे
नदी के साथ प्रेम क्रीड़ा करता हुआ
पत्थर बहता है नदी के साथ
पत्थर मदहोश हो
टकराता है पत्थरों से
टूटता है पिघलता है
और रेत बन जाता है
प्रेम में हर पत्थर
हर चट्टान को
अंततः रेत होना होता है
जिस पर बच्चे खेलते हैं
जिस पर एक प्रेमी लिखता है
अपनी प्रेमिका का नाम
जिससे घर बनते हैं।