"बुद्ध तुम उठो! / आनंद गुप्ता" के अवतरणों में अंतर
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(अपने मित्र स्वपन रॉय की पेंटिंग देखकर)
बुद्ध तुम उठो!
कि घायल है बोधिवृक्ष
काँप रहे हैं मठों के दरों-दीवार
लहूलुहान प्रार्थनास्थल
लगातार गहरा रहे अंधकार में
आदमी के चेहरे को नहीं सूझ रहा
आदमी का चेहरा
बदहवास आदमी
बुदबुदा रहा है तुम्हारा नाम
टकटकी लगाए तुम्हारी ओर।
बुद्ध तुम उठो!
कि आदमी की स्मृतियों के घेरे से
बाहर हो रहे हैं तुम्हारे संदेश
अब शांति और अहिंसा जैसे शब्द
एक मुहावरा बन कर रह गया है मात्र
जो आजकल राष्ट्राध्यक्षों के जुबान की
शोभा बढ़ाने के आते है काम।
बुद्ध तुम उठो!
कि तुम्हारी आँखों के खुलने से
हो एक नया उजियारा
दूर हो अनंत अंधकार
रक्त-रंजित धरती
हरहरा जाए फिर एकबार
आदमी का पहाड़ सा दर्द थोड़ा कम हो।
बुद्ध तुम उठो!
इस धरती का संताप थोड़ा हर लो
क्योंकि देवताओं ने छेड़ रखी है लड़ाइयाँ
देवताओं के खिलाफ।