भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बेशर्म समय में प्रेम / आनंद गुप्ता" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आनंद गुप्ता |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:45, 2 मई 2018 के समय का अवतरण

वे हमेशा धारा के विरूद्ध तैरने वाले लोग थे
अंधियाँ उन्हें छूने से डरती थी
ज़िद पकड़ ली तो
वे आसमान को भी अपने सीने पर झुका लेते थे
पास से गुजरने पर
फूल भी उन्हें सलामी देते
दुनिया में कोमलता बचाए रखने के लिए
उन्होने हमेशा काँटों भरी राह चुनी
उनकी आँखें बेहतर दुनिया के ख्वाब बुनी

तेज हवा में जैसे
दो हथेलियाँ लौ को बुझने से बचा लेती है
वे घने अंधेरे में भी
अपने दिलों में बचा लेते थे
प्रेम की थोड़ी उजास
और उम्मीद की टिमटिमाती रोशनी

वे ऐसी चट्टानें थी
जो खुद पर घास और शैवाल उगने देने के बावजूद
अपने अंदर दावानल बचाए रखती थी
वे युद्ध ,हिंसा ,नफरत
और दुनिया के तमाम छल प्रपंच के विरुद्ध थे
इसलिए राजा,सम्राट,शासक
यहाँ तक की ईश्वर को उनसे सबसे ज्यादा खतरा था
 
वे दीवारों में चुनवा दिये गए
गोलियों से छलनी किए गए
वे ज़िंदा जलाए गए
सूलियों पर लटकाए गए

वे इस दुनिया में बचे उन थोड़े लोगों में से थे
जिन्हें यह आशा थी
कि वे इस दुनिया को ख़त्म होने से बचा लेंगे
जिन्होने इस बेशर्म समय में
मरने से इंकार किया था।