भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बहस रहे हैं / नईम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नईम |अनुवादक= |संग्रह=पहला दिन मेर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

22:21, 13 मई 2018 के समय का अवतरण

बहस रहे हैं
सदन आज क्यों तू-तड़ाक से?

जिनके कंधे काँवर-डोली
लगा रहे हैं खुद को रोली,
संविधान की ओट लिए वे-
मार रहे अपने को गोली।

तोड़ रहे
परिपाटी को निर्भय चड़ाक से।

महामहिम की बोली-बानी
निष्ठा की थी मसल पुरानी,
धन्यवाद भी कहाँ निरापद
डूब मरे चुल्लू-भर पानी;

सिमसिम स्वर के द्वार
आज खुलते भड़ाक से।

ध्यानाकर्षण या मर्यादा,
प्रश्न समूचा उत्तर आधा,
शीतल पेय, मिठासों का हम
बना रहे हैं आज जुशांधा,

टूट गए व्हिप कोड़े
पड़ते थे जो सड़ाक से।
बहस रहे हैं सदन निरंकुश
तू-तड़ाक से।