भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"प्रिया हो गई खाँटी गृहिणी / नईम" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नईम |अनुवादक= |संग्रह=पहला दिन मेर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:39, 13 मई 2018 के समय का अवतरण
प्रिया हो गई खाँटी गृहिणी
सूख गए साजन,
उम्र कैद की सजा भुगतते
बैठे घर-आँगन!
रातों लगी रतौंधी, दिन को साफ नहीं दिखता,
दूर-दूर कुछ शब्द नहीं केवल अक्षर लिखता;
तनिक लिखे को
बहुत समझना-
यही एक कारण।
कहाँ कमाया? कैसा खाया? नहीं मालमत्ता,
मिला कै़दियों से भी बदतर ये वेतन-भत्ता;
शहंशाह हो सका न जीवन-
रहा सिर्फ चारण।
बिना पैर-सिर की ये दुनियाँ, पकड़ नहीं पाता,
टूट रहे हैं पिछले, जुड़ता नया नहीं नाता;
बोली-बानी वही,
किंतु बदले हैं उच्चारण।