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"अब नहीं लगती निबौली / नईम" के अवतरणों में अंतर

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23:28, 13 मई 2018 के समय का अवतरण

अब नहीं लगती निबौली-
नीम की
कड़वी कसैली।

ज्वरग्रसित मुँह, जायका बदला हुआ है।
स्रोत रस का, आय का गँदला हुआ है।

चाय तुलसी की
धतूरे-सी लगे
बेहद नशीली।

आसमाँ औंधा हुआ, कुछ छानकर गहरी पड़े हैं,
धर्म के जलपोत तट पर, डालकर लंग खड़े हैं;

हो गए हम भूत
या फिर
हो गई भुतही हवेली?

लाश जीवित कोयले सी, भट्टियों में झौंकते हैं।
पालतू पशु, आदमी ही आदमी पर भौंकते हैं;
डँस गया मुझको ज़माना
साँस
अब मेरी विषैली।