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"पहला दिन मेरे आषाढ़ का(कविता) / नईम" के अवतरणों में अंतर

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23:35, 13 मई 2018 के समय का अवतरण

पहला दिन मेरे आषाढ़ का।
सूखे का हुआ कभी
कभी हुआ बाढ़ का!
पहला दिन मेरे आषाढ़ का।

नीले आकाश धूल-धुएँ भरे,
दिरकी छाती, रोए घाव हरे;
टूटे या लगा रहे
कहकर भी नहीं कहे-
पीला पत्ता जैसे झाड़ का।

बूँदाबाँदी का क्षण उमस भरा,
सूनी माँगें, विधवा वसुंधरा;
एकाकी भरमाता,
छाया से कतराता-
मरुथल में गाछ एक ताड़ का;

पाटों का पता नहीं डूब गए,
घाटों का पता नहीं ऊब गए,
क्या होगा तन का,

इस मटमैले मन का-
क्या होगा विष दुखती दाढ़ का?
पहला दिन मेरे आषाढ़ का।