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फूले-फले दिन-
झरबेरी से झर गए!
भेंट नहीं पाया, कर लेता मन का धन,
काँटों फँसता तो फँस जाता यह जन;
अच्छे भले दिन-
झरबेरी से झर गए।
पानी में दो पत्ते गीले पुरइन के,
गोते लहरें लेते कब वे गिन-गिन के?
प्यार में पले दिन-
झरबेरी से झर गए।
सोने से भरे रहे सुबहों के आँगन,
शामें डँस गईं किंतु जैसे हों नागिन;
विरासत मिले दिन-
झरबेरी-से झर गए।
झीलों में हंसों से उतरे धँसे हुए,
फूल प्यार के हाथों जूड़े में खुँसे हुए;
उजले धुले दिन-
झरबेरी-से झर गए।
फले-फले दिन-
झरबेरी-से झर गए।