भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"फेर दिनों के / नईम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नईम |अनुवादक= |संग्रह=पहला दिन मेर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

10:00, 14 मई 2018 के समय का अवतरण

किसे आज दोषी ठहराएँ-
शायद हैं ये फेर दिनों के,
आज लकड़बग्घे हो बैठे
चतुराई से शेर दिनों के।

गहन चिकित्सा कक्षों में,
इन दिनों कहीं सूरज भरती है,
ससुरालों में सुघर चाँदनी
विष खाकर परक्श भरती है।

जन्म-मरण सारे उधार के,
ऊँचे है ये सूद ऋणों के।

मान-मूल्य हो गए निलम्बित,
फिर भी ये भारत महान है,
जंगल रहे नहीं,
आखेटक बस्ती में बाँधे मचान है।

संकट कुछ ज्यादा गहराए-
विस्थापित मन प्रजाजनों के।

कोई भोर नहीं बतलाती,
कहाँ किस जगह होगी संध्या?
नई नवेली-सी ये धरती,
खुद को किए ले रही बंध्या।

कौन ध्वजा उठकर फहराए?
निकल गए हैं प्राण, प्रणों के।
किसे आज दोषी ठहराएँ-
शायद हैं ये फेर दिनों के।