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किसे शिकायत नहीं आज दादे--परदादों से?
तल्ख़ शिक़ायत किसे नहीं अपनी बुनियादों से?
पता नहीं कैसे करते, ये किस क़ीमत पर,
ग़ैरबाजिबी है शंका करना नीयत पर।
ग़ौर करें थोड़ा-सा हम भी ठंडे मन से-
जाते हैं क्यों सूरत पर, जाएँ सीरत पर।
निकले तनिक खुले मन से हम बाहर आएँ-
अपनी रची हुईं इन दुर्गम फूहड़ माँदों से।
हम बिरसे थाती की क्या कर सके हिफाज़त?
आँख मीचकर खर्चा, किया बहुत कम अर्जित।
उनकी मीन-मेख से पहले तनिक गरेबाँ झाँके अपने
बेच-भाँज कर खा बैठे हम सही शराफत
गहराई विस्तार अकाश किए लघु, लघुतम-
रहे मुकरतेअक्सर ही हम अपने वादों से।
एक साँस में पुरखों के एहसान पी गए,
उनके तो उनके अपने अरमान पी गए;
पीने की हिक़मत अमली पर बहुत नाज़ है-
सदियाँ छोड़ महज क्षण ही हम आज जी रहे?
पापबोध से मरना था पर येन-केन खुद को
मुक्त कर रहे ग़लत साक्ष्य दे हम अपराधों से।