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"मौसम से ज्यादा बेमौसम / नईम" के अवतरणों में अंतर

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10:05, 14 मई 2018 के समय का अवतरण

मौसम से ज्यादा बेमौसम-
जीना, मरना हुआ हमारा,
ऐसे ढहते हुए रुख को
दे भी तो अब कौन सहारा?

असमय घिरी घटा आकाशे,
मनचीते पड़ सके न पाँसे।
अपने चश्मे छोड़
गैर के चश्मों से कर रहा नज़ारा।

हो न सके अर्द्धांग ढंग के
मन-प्राणों में बिंधे व्यंग्य से,
जिनको जाया आत्मदान दे
आज वही कर रहे किनारा।

उगी चौतरफा सत्यानाशी,
मन चाहे करने को काशी।
विगत भूत-सा पीछा पकड़े-
वर्तमान लगता हत्यारा।

प्राण औंटकर याद किया था-
भूल रहा हूँ वही पहाड़ा।