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"भूलचूक की मुआफ़ी चाहूँ / नईम" के अवतरणों में अंतर

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10:19, 14 मई 2018 के समय का अवतरण

भूलचूक की मुआफी चाहूँ।
अधिक लिखे पर ध्यान न देना।
मोतीचूर न माँग रहे जन,
चाहे है बस चना-चबेना।

हूँ दलाल एजेंट नहीं मैं,
केवल उनका पैरोकार हूँ,
अपने ही पैरों-पीठों
पर मैं सवार हूँ;
झमकाए अब भी कबीर की
भरे बज़ारों ठगिनी नैना।

नैतिक और अनैतिक में हम
पड़े हुए झख मार रहे हैं
इनसे परे मुल्क की क़िस्मत
प्रभु जी आप संवार रहे हैं।

कोयल के अंडे कौवों को
आज पड़ रहे हैं क्यों सेना?

भला आपसे अधिक कहाँ मैं
छोटे मुँह से कह पाऊँगा?
हूँ कगार का वृक्ष कभी भी
आहिस्ता मैं ढह जाऊँगा।

बंद पींजरों में है अब भी,
मुक्ताकाशी तोता-मैना।