भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ऋतुओं के अनुक्रम ही सारे / नईम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नईम |अनुवादक= |संग्रह=पहला दिन मेर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

10:25, 14 मई 2018 के समय का अवतरण

ऋतुओं के अनुक्रम ही सारे
बिटर गए हैं।
साज़िंदे सो रहे
साज़ सब उतर गए हैं।

ऋतुदर्शन गाने के दिन फिर कब आएँगे?
लोकवेद गायक कुमार अब कब गाएँगे?
सुर संवादी
कैसे, क्योंकर बिखर गए हैं।

आए नहीं समय पर आसों क्वाँर कार्तिक,
उतरे नहीं नील झीलों पर पाखी यात्रिक।
सतहों पर सन्नाटे सूने
लहर गए हैं।

शरद, शिशिर के पाँव पालने में दिखते हैं,
क्या होगा आर्सो बसंत का वो लिखते हैं?
मौसम के पंजे गालों पर
उछर गए हैं।

खड़े खेत को दुश्मन ये दिन
बखर गए हैं।