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"कहने की बातें ही बातें / नईम" के अवतरणों में अंतर

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10:43, 14 मई 2018 के समय का अवतरण

कहने की बातें ही बातें,
करने की कुछ हम-तुम कर लें।

बार-बार मरने से बेहतर
एक बार में ही हम मर लें।

धरे हाथ पर हाथ निठल्लों की जमात में,
अपने तम्बू छोड़ दूसरों की जमात में-
बैठे बैठे रहें देखते-
भले खेत आवारा चर लें?

हुआ अगर ऐसा तो धरती फट जाएगी,
अब तक जैसी कटी, न आगे कट पाएगी।
लगे जरूरी तो हम उठकर,
साथ-साथ वैतरणी तर लें।

दबे हुए हैं इनके-उनके एहसानों से,
चेहरे भी रह गए न अपने इंसानों-से।
घड़े पाप के भरे न हों तो
जल्दी से हम उनको भर लें।