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"दिख रहे हैं लोग यूँ / नईम" के अवतरणों में अंतर

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11:03, 14 मई 2018 के समय का अवतरण

दिख रहे हैं लोग यूँ घाटों, मुहानों पर,
किंतु कोई भी नहीं अपने ठिकानों पर।

जो जहाँ पर भी मिला
खिसका धुरी से,
साँस के रिश्ते नहीं
अब बाँसुरी से।

कल तलक घर-द्वार से खुलकर मिले जो-
आजकल ताले पड़े हैं उन मकानों पर।

भौंकते मुँह
काट खाने पर उतारू,
मारने पर
और मरने पर उतारू।

बाँस डाले भी न मिलती थाह इनकी अब,
इन दिनों ये दिख रहे बैठे मचानों पर।

काटकर, कटकर खड़े
संदर्भ से हम,
अर्थ की बलि दे रहे हैं
गर्भ से हम।

जीवितों को छोड़ क़ाफिर आजकल अक्सर
लड़ रहे हैं महाभारत ये मसानों पर।