भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कैसे-कैसे मौसम आए / नईम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नईम |अनुवादक= |संग्रह=पहला दिन मेर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

15:31, 14 मई 2018 के समय का अवतरण

कैसे-कैसे मौसम आए।
वो कोमल गांधार परसते,
हमने धु्रपद धमार लगाए।

साँस-साँस सुर लय, पैमाने
साझे जीवन की गति मापें,
संगत के तबले-मृदंग पर
पड़ती रहीं निरंतर थापें;

प्राण बंजरों में अँकुवाए,
घन घमंड नभ रहे गरजते
धरा सुहागिन सोहर गाए।

पुरवाई ने छेड़े सरगम,
पछुआ ढीले तार कस रही,
यह छोटी-सी छाती, लेकिन
आज समूची सृष्टि बस रही।

डाल-डाल कोयल इतराए
रंगोली-मेंहदी के जैसा-
मुझको आकर कोई रचाए।

लौटें लखन, सिया जू लौटें,
लौटें राजा राम गेह को,
गूँगा हूँ, पर वाणी दूँगा,
इस उछाह को उस सनेह को;

दुनिया मुझे भले बहकाए
मैं तो बंदिश हूँ माटी की-
कोई गाए, कोई बजाए,