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"आर-पार भीतर-बाहर से / नईम" के अवतरणों में अंतर

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16:45, 14 मई 2018 के समय का अवतरण

आर-पार भीतर-बाहर से जंगल घने हुए,
चौक साँतिए दीवारों पर अब भी बने हुए।

एक तने की ओट,
चला आता भैंसा अरना;
आज सत्य के चौराहों पर
झूठ दिए धरना;

शांति कपोत उड़े तो
देखा मुक्के तने हुए।

टुकड़े-टुकड़े धूप हुई,
हमने मानी छाया;
देवि, प्राण, माँ सहचरि को ही
कहा गया माया;

रक्त-कमल छिछली कीचड़
में अब भी सने हुए।

दलदल के व्यामोह
रास्ते सिर्फ बनैले हैं,
नज़दीकी रिश्ते-
रिश्तों के स्वाद कसैले हैं;

धर्मयुद्ध कुरुखेतों माँझे
अब भी ठने हुए।