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"समय का समय / सुषमा गुप्ता" के अवतरणों में अंतर

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14:49, 16 मई 2018 का अवतरण

तुम्हारे साथ ज़िन्दगी थी
तुम्हारे बाद जिंदा हूँ?
शायद

तुम्हारे साथ मुस्कुराती थी
तुम्हारे बाद हँसती हूँ
वो भी खिलखिला कर।
कि यकीं दिला सकूँ
देखो
वाकई
मैं हँस रही हूँ

तुम्हारे साथ बहुत-सी बातें थी
तुम्हारे बाद
सिर्फ़ संवाद हैं
ठहरे हुए
सँभाले नापे-तोले
लफ्जों को बैलेंस करते
खुलते है होंठ
समझदारी की चूनर
ओढ़ ली है ठीक से
अब

तुम्हारे साथ चाव थे
तुम्हारे बाद खानापूर्ति है
निरंतरता बनाए रखना
ज़रूरत है
या मजबूरी
ये सत्य नगण्य है
शाश्वत सच बस एक है
देखो अभी भी
जिंदा ही हूँ

तुम्हारे साथ शृंगार थे
तुम्हारे बाद बंजरपन ढकना मात्र
रह गई है
ये साज-सजावट की चीजें
ज्यों खंडहर पर
काढ़ दिए
चंद बेल-बूटे
भम्रित करने को
देखो कितना सुंदर है अब भी

कामयाब हुई
या नहीं हुई
इस सारे आडंबर के नीचे
दबी हुई
पर जिंदा तो हूँ ही
जैसे चाहा था तुमने
मैं रहूँ
जिंदा भी
खुश भी

तुम्हारे साथ से
तुम्हारे बाद तक
'तुम्हारी जिंदगी'

हाँ!
'तुम्हारी जिंदगी'
यहीं तो कहते थे
तुम मुझे