भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आरती / 1 / भिखारी ठाकुर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भिखारी ठाकुर |अनुवादक= |संग्रह=आर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

17:02, 16 मई 2018 का अवतरण

प्रसंग:

सिंह-वाहिनी दुर्गा की आरती में कामना की गई है कि वे भव-निधि पार करा दें।

तेबड़ा

जय जय मात सुनहु पुकार॥टेक॥
उधकेसी जग जननी के सजल अजब शृंगार।
भुज बिराजत खर्ग खप्पर रहत सिंह सवार॥
करत भक्षण मांस सो नित हरत धरनी भार।
लाल लहँगा जड़ित साड़ी तेल-सेनूर टहकार॥
कहे ‘भिखारी’ मोर नइया करहु भवनिधि पार।जय जय मात सुनहु पुकार॥