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दयानन्द, नानक, मिथिलेशु जेते देवगण भारत देशु।
सबको आरती प्रेम पुरातन। भाव सहित करऽ नितः नितः मन।
जो यह प्रेम से आरती गावे। बिनही प्रयास परम पद पावे।
कहत ‘भिखारीदास’ कर जोरी। पुरवहु सकल मनोरथ मोरी।
मन आरती करीलऽ श्रीबैकुण्ठपति के।
दोहा
जनक सुनैना मैंना सैना, सेवरी आजामिल गिद्ध।
सबको आरती करत ‘भिखारी’ करहु मनोरथ सिद्ध।
मन आरती करीलऽ श्रीबैकुण्ठपति के॥
दोहा
चली लट खोलत, पर्वत तोड़त नग्न हिलोरत। आई है गंगा॥
आई नगीच पाप कटी त। आई रही शिव के सत संगा॥
जब तक सूरज शिव मस्त के। तब तक लोग पखारत अंगा॥
दास भिखारी बिचारी कहे। सब तिरथ में एक गंगा॥