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प्रसंग:
कम आयु की मृत्यु पर होने वाले कर्मकाण्ड में नाई की प्रमुख भूमिका का उल्लेख।
दोहा
ब्राह्मण क्षत्री वैश्य शूद्र गण। सुनहूँ विनय सब मोर॥
गिरत 'भिखारी' त्राहि चरन कमल में। त्राहि-त्राहि करि शोर॥
चौपाई
लड़िका मुअल बाटे बाचा। एह में हम का करिहों चाचा॥
बबुआ नइखे विप्र के काम। बेसि ना खरचा लागी दाम॥
खोजऽ नाउ कमावऽ माथ। अइसन कइ देहलन रघुनाथ॥
नोंह कटा लऽ मारऽ गोता। गंगा, इनार चाहे सोता॥
बबुआ बीते दऽ तनिको रात। तारा देख के खइहऽ भात॥
आधा छूतिका नाई पइहन। एही में पूरा मगन होई जइहन॥
इहे बान्हल बाटे दाम। सुध भइल सहजे में चाम॥
सहजे ममिला लउकत बाटे। चाचा उतरलीं छूरा का घाटे॥
चाचा जहिआ रहे जनेव। ओहिजो मुन्डन के लागल भेव॥
जगवे-जगवे जुन के नाउ नून। कइसे चाचा दिआइ गुन॥
जवना दिन गऊ-हत्या लागल। ऊ जजमान हो गइलन पागल॥
धन के दाही गोत्र कहावस। से ना ओह घरी देह छुआवस॥
पुरोहित पातक लाके गइलन। गंगा सेवला पर ना खइलन॥
फरके से देखलवलन भाव। पहिले जाके माथ कमाव॥
नोंह कटा लऽ करऽ स्नान। धर गौरी-गणेश के ध्यान॥
हवन कराइब लागी दाम। सहज ना ह हत्या के काम॥
नाऊ पहिले साफा कइलन। पागल विप्र का लायक भइलन॥
कहीं जे ई हत्या के लेल। कहब जे कइलन 'भिखारी' खेल॥
दोहा
खेल कहाई मिले ना पाई, हंसी में बगदी बात।
कहे 'भिखारी' अपना मन में, समझस नाउ जात॥