भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नाई बहार / 7 / भिखारी ठाकुर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भिखारी ठाकुर |अनुवादक= |संग्रह=ना...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

18:51, 16 मई 2018 के समय का अवतरण

प्रसंग:

मृत्यु के शमशान घाट से लेकर पूरे कर्मकाण्ड में नाई का महत्त्वपूर्ण स्थान है, किन्तु उसकी मजदूरी अपेक्षाकृत नगण्य है, जिसके लिए नाई जाति को दुःख है।

चौपाई

गिरल पसेना छूटल मइल। रोज मजूरी कतिना भइल॥
माई-बेटा के सब जग-सेवा। जेकरा पूजत त्रिदेवा॥
से असथापन कइलन नाउ। तेकर नइखरे तनीको भाउ॥
पूजत बारन चारो बरन। से नाउ का नइखे शरन॥
मिलत बाटे दुगो पइसा। भइल पंच के मरजी जइसा॥
जजमनिका के नाउ रेल। देखीं बाबू करम के खेल॥
पवने चार गज मरदानी। पनहा ओछ गजा पाँच जनानी॥
काने लाग के कइलन सीख। दू गो पइसा मिलल भीख॥
अब कइसे कुल-पूज कहाला। काहांवां खोजी चन्दन-माला।
कहे 'भिखारी' धर-के ध्यान। नइखे तन में विद्या-ज्ञान।