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"नाई बहार / 8 / भिखारी ठाकुर" के अवतरणों में अंतर

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18:53, 16 मई 2018 के समय का अवतरण

प्रसंग:

मृत्यु के बाद सभी कर्मकाण्डों में ब्राह्मण हठपूर्वक जजमान से सारा दाम करवाते हैं और उन्हें वह खुद ले जाता है; किंतु नाई को मजदूरी कम मिलती है। वह भयवश न तो हठ कर सकता है और न एतराज। इसका दर्द उसे बहुत रहता है।

दोहा

भाई नाई कइसे कहीं, आवत नइखे बात।
जजमनिका हित सहलीं बहुत शीत-धूप-बरसात॥

चौपाई

जइसे मुरदा घाटे गइल। छौर कर्म के खोजी भइल॥
दाही मुरदा भइलन पार। तब जारल आपन परिवार॥
दशगात्र के जहिआखउर। चली ना काम बे-भइले क्षउर॥
जब विकरा के आइल पारी। ई भूत नाउ बिनु के टारी॥
नइखन जानत मन्तर-जाप। तेकरे सिर पर चढ़ल पाप॥
अबर का सिर जबर आइल। नाउ के सब ना जस गवाइल।
ओह नेग के सवा आना। तेकर कहे 'भिखारी' बाना।

दोहा

मूल जगत में दूई है। एक राम एक दाम।
राम देते हैं मुक्ति-पद, दाम सम्भारत काम॥

चौपाई

अब आगे फेर कहत बानी। धरि के ध्यान अम्बिका भवानी॥
निज कुल-पूज के सुनीं हाल। खिंचत बाड़न पूरा माल॥
मुअल सेयान ग्यानऽल भाई. सुनऽ विप्र-बचन मन-लाई॥
काहे ना सुनबऽ गरुड़ पुरान। कइसे गति इहन जजमान॥
मरनेवाला बन्हलन खिल्लत। तेकरा नइखे कुछुओ मिलत॥
मिली ऊहे जे करबऽ दान। देव-पुरोहित के जजमान॥
एक जून के फुरमावत बानी। वस्त्र-रुपइया-सोना-चानी॥
पुष्प-दीप चाहे पचमेवा। सब कुछ पइहन पितर देवा॥
रोआं जार के भइलऽ दहिया। आज ना देबऽ तब देबऽ कहिया॥
मोल-मोलाई होखे लागल। दाया देह छोड़ के भागल॥
दुनो ओर से दाम कहाता। जइसे सौदा हाट बिकाता॥
पुरोहित का सौदा के ज्ञान। से खरीदत बाड़न जजमान॥
फजिरे से बारह बज गइल। तबले ना कुछ मरजी भइल॥
रहल घरी तिन एक दिन। पुराहित का जजमान अधीन॥
कुस के पंइती परल फांस। सन्तावन बा भूख-पियास॥
तोसक-तकिया-खटिया दान। कुछ ना दिहलऽ हे जजमान॥
चौदह मासिका के तइआरी। साहस करऽ अबकियो बारी॥
जो कुछ होई से ब्राह्मण पइहन। काहे न नाउ असहीं धइहन॥
काम का पाछा धूनलन हफन। पवलन मुरदा पर के कफन॥
केहू कहत बा छोड़ऽ भकोला। ई सब कपड़ा डोम के होला॥
तबहूँ नइखे लागत शरम। जुरला बिनु मन बानरम॥
झूला-झुलिया गमछी भइल। दुःख से लाज पताले गइल॥
दुःख से मन भइलन बउराहा। जुझलन होके चलिसवाँ दाहा॥
जग लायक ना मिलल भोजन। एही से मनुआं भइल बे-ओजन॥
खरी तेल चाहे दिआ बराईऽ। छुरा के नेग ई दुइये पाई॥
रोख देख के उजुर कइलन। नजर परत चुप होई गइलन॥
बाघ बराबर लागल डर। कइसे बसी नाउ के घर॥
मेहनत के नाम मिलल मजूरी। मुअलन से गइलन यमपुरी॥
जेकर हक होय जहँवा जइसन। इहे ना देखी से पण्डित कइसन॥
ई बरियारी केहू ना कहल। नाई वंश दण्ड सगरो सहल॥